Thursday, June 24, 2010

सुनी- सुनाई- 3

हज़ार फूल कम है, इक दुल्हन को सजाने के लिए
एक फूल काफी है, अर्थी पर बिछाने के लिए
हज़ार खुशियाँ कम है, इक गम को भुलाने के लिए
एक गम काफी है, जिन्दगी भर रूलाने के लिए

Monday, May 24, 2010

सुनी-सुनाई-2

मेरा प्यार तेरे प्यार से बांका है।
लेकिन तुने कम आँका है ॥
मुझको देख दरवाजे-खिड़की बंद करने वाली॥
मुझे यकीं है तुने दरारों से झाँका है॥

सुनी-सुनाई- 1

कभी सर्दी कभी गर्मी मौसम के ये नज़ारे है .
प्यास उन्हें भी लगती है जो सागर के किनारे है ..

Tuesday, May 18, 2010

मान गए नेताजी ........

मान गए नेताजी -
देश को जातिवाद से मुक्त करने की बात आप करें .....
जाति के प्रमाण-पत्र बनाने की व्यवस्था भी आप ही करे.....
हम निहारते है उनकी प्रतिभा....
बनाने चाहते अभिन्न मित्र .....
आप उन्हें खड़ा करते हो उस लाइन में
जहाँ के कागजों से सिद्ध किया जाता हैं
इनका नाता प्रतिभा से नही है,
हमारे द्वारा बांटी जा रही खैरात से है .........

Saturday, April 24, 2010

तुकबंदी

मर कर भी हम तो थिरकते गुनगुनाते नज़र आएँगे !
जिंदा हो कर भी वे तो कब्र में लेटे नज़र आते है !!

Monday, April 5, 2010

रामदेव बाबा का कदम

रामदेव बाबा ने नई पार्टी अवश्य बना ली है, किन्तु प्रश्न यह उठता है की उनकी पार्टी के मतदाता कौन होंगे !कुछ उचित लोग बाकि के वे सभी जो आजादी के बाद से ही दो कौड़ी,शराब आदि में बिकते रहने वालो की भीड़ होगी ! मेरी तो सहानूभूति है बाबाश्री के साथ ! लेकिन पार्टी बना डालने का मामला समझ से परे है! बाबा की पार्टी कुछेक प्रतिशत वोट काटने के अतिरिक्त कोई अधिक जादू दिखा सके मुश्किल लगता है !निःसंदेह बाबा इस समय देश के विराट व्यक्तित्व है ! कोई भी बड़ा दल उन्हें सप्रेम अपने में शामिल कर लेता ! समय आने पर बाबा आसानी से संसद व मंत्री भी बन सकते थे , और यही से वे उन्हें उपलब्ध विभाग को पूरी तरह सुधारने का प्रयास कर सकते थे! मै सोचता हूँ इसी प्रकार थोडा-थोडा कर देश में सुधार हो सकता है!
संजय पाराशर

Wednesday, March 31, 2010

अप्रैल fool

१ अप्रैल हमारे देश में मात्र नाम के लिए शेष रह गया हे ! कुल मिलाकर राजनीतिज्ञों ने आम जनता को पिछले ६२ वर्षो इतना अधिक मूर्ख बना डाला है की आम जनों को नकली रूप से मूरख बनने या बनाने में किसी प्रकार के सुख की अनूभूति नहीं होती है! ( संजू-पराशर)

Friday, March 26, 2010

उमा का इस्तीफा

उमा भारती को शायद यह ज्ञान उत्पन्न हो चुका है की राजनीति में उनका वजूद अब शून्य रह गया है ! पार्टी का निर्माण, फिर हजार प्रकार की बयानबाजी कर अपने समर्थको का विश्वास तोडना और अब पार्टी से इस्तीफा देकर किसी देवालय चले जाना यही दर्शाता है की वे अब अपनी टूटती महत्वाकंछाओ को अधिक सहन नहीं कर पा रही है !निश्चित ही यह प्राकृतिक न्याय कहा जा सकता है जो आज उमा की राजनीतिक हालत है! उमा ने अपनी महत्वकान्शाओ के चलते भगवा वस्त्रो की साधुता का मान भी नहीं रखा और प्रधानमंत्री बनने के स्वप्न के चक्कर में न केवल बीजेपी बल्कि उनके कट्टर समर्थको की राजनीति को भी नुकसान पहुचाया!इंदौर के बीजेपी अधिवेशन के बाद उमा ने निश्चित ही महसूस किया होगा की बीजेपी में उनके द्वार पूरी तरह बंद हो चुके और उनकी राजनितिक राह आसन नही है!

Sunday, March 21, 2010